iirfan khan biography:Rare photos ,family,filmy career,death

कहानी इरफान खान की :जयपुर से ऑस्कर तक  पहुंचने की कहानी 

iirfan khan biography,rare photos,family,filmy career.....


           वह लड़का जो जयपुर से आया था ,नवाबी खानदान से ताल्लुक रखता था ,जो अच्छा क्रिकेटर था ,लेकिन बाद मे वह एक्टिंग में आया और  फिल्मो  में काम करके एक अलग मुकाम हाशिल किआ|  नाही बॉलीवुड बल्कि हॉलीवुड की ऑस्कर विजेता फिल्मो में भी काम किआ ,जिनकी एक्टिंग के दुनिया कायल थी,जिनके  करोडो चाहक हे ,और हमेशा रहेंगे। जो आज हमारे बिच नहीं हे.... हम बात कर रहे हे इरफ़ान खान की। ... एक अलग ही शक्शियत। ...
           
                                वह अपनी आखरी सांश तक काम करते रहे। .अपनी कला के प्रति उतनी निष्ठां थी.आज कल के सोशल मीडिया  के ज़माने में फेमस होना आम बात हे. लेकिन रेस्पेक्ट  मिलना एक अलग ही मुकाम हे. जो इरफ़ान ने प्राप्त किआ। उनको हॉलीवुड तक सोहरत हाशिल हुई। भारत के कई  डायरेक्टर्स उनको पहचान नहीं पाए ,कुछ को छोड़के ! लेकिन हॉलीवुड ने उनको पहचाना। इरफ़ान साहब सालो खुदको  और अपनी कला को तरासते रहे.  इरफ़ान हमें हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे,अपनी कला के प्रति समर्पित होने की,या बात बात हो धर्म के प्रति खुले मन से बोलने की। अपनी कला से हमेशा  सब के दिलो में राज करते करेंगे। ... 
           हॉलीवुड की अभिनेत्री  एंजेलिना जोली  उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए याद करती  हे की,मुझे a mighty heart फिल्म में उनके साथ काम करने का मौका मिला। वह कलाकार की तरीके से बहोत उदार थे. यही बात उन्हें सबसे अलग करती थी। उनके साथ कोई सिन करना खुशनुमा अनुभव था।  में उनकी प्रतिबद्धता और उनके हास्य के लिए हमेशा याद  करुँगी।

      जन्म

 

           इरफ़ान खान का जन्म 07  जनवरी 1967  राजस्थान में, एक मुस्लिम परिवार में, सईदा बेगम खान और यासीन अली खान के घर पर हुआ था। उनके माता-पिता टोंक जिले के खजुरिया गाँव से थे और टायर का कारोबार चलाते थे। उनका परिवार टोंक के नवाब परिवार से ताल्लुक रखता था।

   बचपन 

 अपने अम्मी और अब्बा के साथ। .. 

      जब जन्म हुआ  तब उनका नाम नवाब साहबजादे इरफ़ान अली खान रखा गया था। सभी कागजातों पर उनका यही नाम  चलता था। तब वह जयपुर में रहा करते थे। उनका ननिहाल टोंक था। बचपन में वहा  जाया करते थे। इरफ़ान बचपन में सबसे ज्यादा अपने नानी के करीब थे। इरफ़ान की एक बड़ी बहन थी और दो छोटे भाई हे। 
            बचपन में वह क्रिकेट अच्छा खेलते थे | 



              घर वाले चाहते थे की इरफ़ान teacher या lecturer बने! लेकिन इरफ़ान को क्रिकेट का सोख था।     इरफान इतना अच्छा क्रिकेट खेलते थे की  सी के नायडू प्रतियोगिता के लिए 23 साल से कम उम्र के खिलाड़ियों हेतु प्रथम श्रेणी में चुना गया था। दुर्भाग्य से, धन की अभाव के कारण वे प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए नहीं पहुँच सके।
इरफ़ान अपनी बड़ी बहन रुखसाना बेगम 

        उस ज़माने में जयपुर और अजमेर रेडिओ पर नाटक के शो आया करते थे। तब वह दोस्तों के साथ सुना करते। तभी उनको नाटक की जानकारी मिलनी शुरू हुई। लेकिन परिवार सिनेमा के खिलाफ था। 



         टोंक में उनकी खाला का घर बहोत बड़ा था। इत्तफाक से उस  घर की दीवाल सिनेमा घर की दीवाल से जुडी हुई थी। उस दीवाल में एक दरवाजा था ,उस दरवाजे से सिनेमा जा सकते थे। लेकिन घरवाले सोचते थे की बच्चे सिनेमा न देखे। 

        इरफ़ान के एक चाचा थे जो बम्बई में रहा करते थे.वह जब आते तो सभी  बच्चो को सिनेमा ले जाते ,यातो पैसे दिया करते। तो सभी बच्चे चाचा के इंतजार में रहते थे। बिच बिच में खाला से बात करके  उनके घर की दीवाल से जुड़ा हुआ दरवाजा खुलवा देते थे यही सिलसिला चलता था। 
       जयपुर में पढाई आगे बढ़ी। M. A  में एडमिशन लिया। M. A  उर्दू से कर रहे थे। उस वक्त तक नाटक का शोख चढ़ गया था। इसी दौरान मिथुन चक्रवर्ती की एक फिल्म आयी थी। उस फिल्म का नाम था ''Mrigayaa''

जब यह फिल्म जयपुर सिनेमा में लगी तो ,इरफ़ान और उनके दोस्त फिल्म देखने गए। फिल्म देखने के बाद दोस्तों ने कहा की इरफ़ान तुम्हारी शक्ल तो मिथुन चक्रवरती से मिलती हे। यह बात इरफ़ान के दिल में बेठ  गई। उसके बाद का वाकया वो एक इंटरव्यू में बताते हे की ,उस समय मिथुन जैसी हेयर स्टाइल करवाने अच्छे सलून को ढूंढा करते ,लेकिन उनके पास पैसे नहीं होते थे। तो वह कही दूसरी जगह सेटिंग करवाते लेकिन दूसरे दिन सुबह बाल पहले जैसे हो जाते। 
        उस समय आर्ट और कमर्सिअल दो प्रकार की फिल्मे चलन में थी। आर्ट फिल्मो का दौर था। जब इरफ़ान ने नसीरुद्दीन की एक्टिंग देखि तो फ़िदा हो गए ,तब उनको लगा की एक सामान्य दिखने वाला भी फिल्मो में काम कर सकता हे.लोग उसको पसंद भी कर सकते हे। तब उनका कॉन्फिडेंस बढ़ा और लगा की में भी कर सकते हु।
रविंद्र मंच -जब कॉलेज के दिनों में  इरफ़ान यही नाटक किआ करते 


      कॉलेज में भी नाटक किआ करते थे। जयपुर में रविंद्र नाटक मंच के जुड़ गए,और वही पर नाटक करने लगे। तभी इरफ़ान को किसीने बताया की  अगर एक्टिंग में आगे बढना हे और फिल्मो में काम करना हे तो नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में पढाई करनी चाहिए। उन्होंने उसकी जानकारी इकठ्ठा करनी स्टार्ट की। रविंद्र मंच में नाटक करने आने वाले स्टूडेंट से पता चला की एनएसडी वह जगह हे जहा पे इंसान को बहेतरीन एक्टिंग और कला सिखाई जाती हे। इरफ़ान को कहा गया की एनएसडी जाओ और फिल्मो में भी काम कर सकते हो। 
      यह बात उनको छू गई उन्होंने उसे अपना लक्ष बनाया ,और तय किआ की कुछ भी हो जाए एनएसडी जाएंगे। लेकिन घरवालों को यह पसंद नहीं था उन्होंने पिता को मनाया और कहा की वह से पढ़के प्रोफेसर बनूँगा। में वहां से पढ़के जयपुर में अध्यापक ही बनूँगा। 
    शुरुआत में अपनी माँ को एनएसडी ले गए थे। तब उनकी माँ को लगा  की यह तो कॉलेज जैसा ही हे,और उनको मना लिए। कहा की में यहाँ से  पढ़के प्रोफेसर बनुगा। 

   नेशनल स्कुल ऑफ़ ड्रामा दिल्ली 


      लेकिन जिस साल एनएसडी में दाखिला लिए उसी साल उनके पिता का देहांत हो गया। तो घर की सारी  जिम्मेदारियां इरफ़ान पर आ गई। तब उनके छोटे भाई ने होशला बढ़ाया और कहा की तुम अपनी पढाई जारी रखो। 
नेशनल स्कुल ऑफ़ ड्रामा के दोस्तों साथ 

       1988  में  मीरा नायर  एक फिल्म बना रही थी सलाम बॉम्बे। मिरा  नायर ने एनएसडी का दौरा किआ। उन्हें नए लोग चाहिए थे। उन्होंने इरफ़ान खान को देखा और एक रोल ऑफर किआ। तो एनएसडी में ही इरफ़ान को पहला रोल मिला। लेकिंन बाद में मीरा नायर ने कहा की यह रोल बहोत बड़ा हे और तुम उसके लिए फिट नहीं हो तो तुम्हे यह रोल नहीं मिल सकता। उस  समय इरफ़ान बहोत दुखी हुए थे और रत भर रोये थे। 
    मीरा नायर ने उन्हें एक छोटा रोल दिया। सलाम बॉम्बे में महज आधे मिनट का था जिसमे इरफ़ान खान को एक खत लिखने वाले चारैक्टर के रूप में दिखाया गया था. फिल्म अच्छी रही। 

       लेकिन उसके बाद काम नहीं मिला  
      मीरा नायर  अफ़सोस था की बड़ा रोल नहीं दे पाए। लेकिन इरफ़ान से वादा किआ था। ... जो उन्होंने 10 साल बाद भी  निभाया। 
       1988 में एनएसडी से पास हुए और मुंबई आये।मुंबई म शंघर्ष का एक एक नया शिलशिला शुरू हो गया। मुंबई में नए नए थे। किसीको जानते नहीं थे। कोई पहचान नहीं थी 
     लेकिन  उस  दौर में जो आर्ट फिल्मे बन रही थी वह गायब हो रही थी और मशाला फिल्मे जगह बना रही थी। आर्ट फिल्म के डिरेक्टर भी काम दीखते थे। लोगो का झुकाव बदलते समाज के साथ बदला था। . 
     जिस कैलिबर के इरफ़ान थे उनको लगा की यहाँ करने को कुछ नहीं हे।  लेकिन वापस घर भी नहीं जा सकते थे। तभी उनको लगा की टीवी में काम किआ जाए। 

परिवार 

इरफान ,पत्नी सुतापा सिकदर ,बेटा बाबिल खान 

          इरफान 23 जनवरि 1995 को सुतापा सिकदर के साथ शादी के बंधन में बांध गए थे जिनसे वह नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में मिले थे ,सुतापा एक डायलाग लेखक हे,उनके और इरफान के दो बेटे हे, अयान  और बाबिल। इरफान  ने बताया की वह स्कुल के समय में काफी शर्मीले थे और बहुत कम बोलते थे। जिसकी वजह से उन्हें काफी डाट खानी  पड़ती  थी 

    उस समय श्रीकांत ,भारत एक खोज,चाणक्य ,थे ग्रेट मराठा ,बनेगी अपनी बात,जय हनुमान ,चंद्रकांता। श्रीकांत और भारत एक खोज की वजह से उन्हें एक पहचान मिलने लगी.लेकिन सफर अभी लम्बा था अभी काफी सारे इम्तिहान थे,जिसे पास करना था कारवां अभी शुरू ही हुआ था। संघर्ष करते करते  15 साल हो चुके थे लेकिन सीरियल में काम करके गुजारा चला रहे थे 2000 की साल में उनके अजीज दोस्त तिग्मांशु धुलिया एक फिल्म लेके आते हे hashil 
अपने अजीज दोस्त फिल्म निर्माता  तिग्मांशु धुलिया के साथ 

       तिग्मांशु और इरफान एनएसडी के टाइम से दोस्त थे।इरफान तिग्मांशु के सीनियर थे।  तिग्मांशु हाशिल  मे एक पात्र के लिए एक्टर धुंध रहे थे लेकिन मिला नहीं। यह फिल्म स्टूडेंट पॉलिटिक्स पर थी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट पॉलिटिक्स की कहानी थी। तो तिग्मांशु ने उस फिल्म के लिए रणविजय सिंह की भूमिका के लिए इरफ़ान को पसंद कर लिया । शूटिंग मुंबई में शुरू हुई। 10 दिन में शूटिंग पूरी हो गई ,जिसमे इर्र्फान को रणविजयसिंह की भूमिका निभा रहे थे। 
रणविजयसिंह की भूमिका में इरफ़ान 

           उस शूटिंग से इरफ़ान खुश नहीं हुए ,जिससे तिग्मांशु से बात करके उन्हीने शूटिंग को इलाहबाद में ही करने को कहा। क्युकी वह इलाहाबादी लहजा बोल नहीं पा रहे  थे।तय हुआ की शूटिंग  फिरसे इलाहबाद में की जाए।इरफ़ान ने  कहा की जब शूटिंग स्टार्ट हो उसके १० दिन पहले ही मुझे इलाहबाद भेज दिए जाए। 
   इरफान शूटंग से 10 दिन पहले पहुंच जाते हे। जैसा चेरेक्टर हे इलाहाबादी  छात्र का तो वह वैसा बोलने की तयारी करते हे। पुरे दिन वह की गलियारों में लोगो से बात करते हे। छोटी छोटी चीजों पर ध्यान देते हे। उसके बाद शूटिंग सुरु होती  हे। इरफ़ान का परफॉर्मन्स काफी सराहा जाता हे। Hashil से इरफ़ान का नाम हुआ ,उन्हें इरफ़ान खान बनाया। इस फिल्म से ही बेस्ट विलेन का अवार्ड मिला।  
      हाशिल के बाद दो साल बाद आई मक़बूल। मक़बूल में इरफ़ान का चेरेक्टर बहोत ही खाश था।  
     एक इंटरव्यू में  हे इरफ़ान साहब बताते हे की हाशिल के बाद हररोज दो फ़ोन आते थे। लेकिन विलेन के रोल के लिए। लेकिन इरफ़ान साहब कहते हे की वो तो कर लिए अब कुछ दुशरा लाओ। इसीलिए उन्होंने   उन सभी ऑफर्स को नकार दिए। वह जो अपनी प्रतिभा के मुताबिक करना चाहते थे वैसा रोल नहीं मिल रहा था। लेकिन वह काम करते रहे। एक टाइम आया जब वह इंड्रस्ट्री छोड़ना भी चाहते थे। ... क्युकी काम ही नहीं मिल  पा रहा  था। 

2001  the worrier 

ब्रिटिश फिल्म मेकर आसिफ कपाड़िया एक फिल्म बना रहे थे। बड़े बजट की फिल्म थी। लेकिन आसिफ किसी जाने माने हॉलीवुड अभिनेता के साथ काम नहीं करना चाहते थे। वह एक ऐसे एक्टर की तलाश कर रहे थे जो अच्छा हो लेकिन जाना पहचाना न हो। तब उन्होंने इरफ़ान खान के अभिनय को देखा।देखने के बाद इरफ़ान को इस फिल्म में अभिनय के लिए बात की ,और इरफ़ान तैयार हो गए। इस फिल्म के लिए उन्हीने काफी महेनत की. अपनी अंग्रेजी ,और फ्लुएंसी के ऊपर महीनो काम किआ।  जब यह फिल्म रिलीस हुई तो पूरी दुनिया उनकी कायल हो गई लोगो ने उनको बहोत पसंद किआ। हॉलीवुड में उनकी काफी प्रसंशा हुई.
     2005 में आई फिल्म Rog . जिनमे दर्शको ने कहा की इरफ़ान खान साहब की आंखे उनके डायलॉग से ज्यादा बोलती हे।  
    उसके बाद  2007 में फिल्म आई लाइफ इन अ मेट्रो जिनमे उनको बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का ख़िताब मिला।
      जो एक इंटरव्यू में पूछा गया की आप तो मुंबई छोड़ने वाले थे ? तो कहते हे ;में काम से बोर हो जाता हु ,में काम को काम नहीं बनता चाहता ,यह तो विद्या हे ,आज बजे जो में शिख रहा हु ,इसको में काम की तरह नहीं ले सकता ,काम की तरह लेता हु मगर मुझे इसमें मज़ा आना जरुरी हे मेरी  रहना जरुरी हे ,तो जहा वो जिन्दा रहेगी में वहां जाऊंगा।

        पूछा गया तो आप कैसे रुक गए ? तो बताते हे की उनके बहोत अजीज दोस्त तिग्मांशी धुलिया ने कहा'' रुक जाओ एक दो अवार्ड दिलवा देता हु फिर चले जाना।''

पान सिंह तोमर 2012  

पान सिंह तोमर की भूमिका में इरफ़ान। ... 




2 मार्च 2012. एक छोटे बजट में बनी फ़िल्म रिलीज़ हुई पान सिंह तोमर. उन जगहों पर शूट हुई जहां डकैत असल में रहा करते थे. धूल फांकते तिग्मांशु धूलिया और इरफ़ान खान.इसी फिल्म से 3 मई 2013 को तिग्मांशु धूलिया और इरफ़ान खान ने बेस्ट  फ़िल्म और बेस्ट ऐक्टर के लिए नेशनल अवॉर्ड लिया.

एक बेहतरीन फ़िल्म होने के सिवा मुझे तिग्मांशु और इरफ़ान की ये कहानी आश्चर्य से भर देती है. मज़ाक में बस हवा में कही एक बात सच होकर जब ज़मीन पर आ जाती है तो लगता है ‘दिन में एक बार जुबान पर सरस्वती बैठती है’ वाली बात सच ही है. फ़िल्म पान सिंह तोमर अपने आप में बॉलीवुड के सभी लिखे-अनलिखे नियमों को तोड़ती हुई मिलती है. और उसके बावजूद आज ये फिल्मों में एक लेजेंड बनी फिरती है. इसके डायलॉग भले ही बीहड़ की रूखी ज़ुबान में हों लेकिन महा शहरी आदमी भी उन्हें दोहराता हुआ मिलता है. जो उस ज़ुबान में नहीं बोल पाता, अपनी स्टाइल में कहता है. लेकिन बच नहीं पाता.
2011 में महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रतिभा देवीसिंह पाटिल से पद्मश्री अवार्ड प्राप्त करते इरफान 

     पान सिंह  तोमर पर  इरफ़ान साहब कहते हे की यह केरेक्टर उनके पिता से बहोत मिलता जुलता था.२०१२ में इसी मूवी पर उन्हें नेशनल अवार्ड भी मिला। २०११ में उन्हें पद्मश्री अवार्ड से  भी सम्मानित किए गए। 
      इसी फिल्म से उनके रिअलिस्टिक अभिनय की चारो और तारीफ होने लगी।  




स्लैम डॉग मेलेनिएर 


       सलेम डॉग मेलेनिएर के डिरेक्टर Danny Boyle कहते हे की इस इन्शान के अभिनय को देखना एक अलग ही अंदाज हे। हर बार उशी पेरफ़ेक्शन से अभिनय करना यह बहोत ही कम लोग कर पाते हे। उन लोगो में इरफ़ान हे। यह फिल्म को अकादमी अवार्ड मिला। इरफ़ान खान को अद्द्भुत अभिनय के लिए स्क्रीन एक्टर्स  गिल्ड अवार्ड दिया गया 

लाइफ ऑफ़ पाई 


लाइफ ऑफ़ पाई के डिरेक्टर Ang Lee कहते हे ,कैमरा ऑन होते ही इरफ़ान खान मोलिटर पटेल बन जाते हे।अब रिअलिस्टिक और संवेदनशील हिंदी फिल्म डिरेक्टर भी इरफ़ान का लोहा मानते हे 

 लंच बॉक्स 


      2013 में आई पिक्चर लंच बॉक्स इरफ़ान को एक रोमांस करता एक कर्मचारी के रूप में दिखाया गया हे। यह फिल्म बाफ्टा अवार्ड के लिए नोमोनेट की गई। पूरी दुनिया ने उनके अभिनय को देखा और पूरी दिनिया के सिनेमा में पहचान मिली। उसके बाद २०१४ में फिल्म हैदर और गुंडे। २०१५ में पीकू और तलवार ये  चारो फिल्मे कमर्सिअली हिट हुई.

हिंदी मीडियम 


           २०१७मे आई हिंदी मीडियम।इरफ़ान की इस फिल्म को सबने बहोत पसंद किआ और किआ और यह उनकी सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाली पिक्चर बानी। उनकी आखरी फिल्म अंग्रेजी मीडियम रही। जिसकी शूटिंग के दौरान काफी बार इरफ़ान की तबियत ख़राब हो जाती थी। शूटिंग को रोक लिए जाता और जब उनकी शेहद  अच्छी हो जाती तब फिर शूटिंग स्टार्ट करते। यह उनकी आखरी फिल्म साबित हुई  . 
       

निधन 

        इरफ़ान खान का निधन २९ अप्रैल २०२० को मुम्बई की कोकीलाबेन अस्पताल में हुआ था, जहाँ वे बृहदान्त्र संक्रमण से भर्ती थे। ठीक चार दिन पहले उनकी माता का जयपुर में निधन हुआ था जिसके अंतिम दर्शन नहीं कर पाये थे।वर्ष २०१८ में उन्हें न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर (अंत:स्रावी ट्यूमर) का पता चला था, जिसके बाद वे एक साल के लिए ब्रिटेन में इलाज हेतु रहे। एक वर्ष की राहत के बाद वे पुनः कोलोन संक्रमण की शिकायत से मुम्बई में भर्ती हुए। इस बीच उन्होंने अपनी फ़िल्म अंग्रेज़ी मीडियम की शूटिंग की, जो उनकी अंतिम फिल्म थी।उन्हें अंत:स्रावी कैंसर था, जोकि हॉर्मोन-उत्पादक कोशिकाओं का एक दुर्लभ प्रकार का कैंसर है।
      उन्होंने अपने 32 साल के करियर में 88 फीलमो में काम किआ। जिसमे १० से भी ज्यादा फिल्मे हॉलीवुड की थी। अपने एक निजी इंटरव्यू में बताते हे की अगर फिर से मौका मिले  तो अपनी पत्नी सुतापा के लिए जीना चाहता हु.. लेकिन उनकी यह इच्छा अधूरी रही। एक्टर्स तो बहोत हुए,समय के साथ आएंगे और जाएंगे लेकिन इरफ़ान नहीं बन पाएंगे ,जो सिर्फ अपनी कला के लिए जिए। अपनी  आखरी  सांश तक काम करते रहे। .अपनी कला के प्रति उतनी निष्ठां थी.आज कल के सोशल नेटवर्किंग के ज़माने में फेमस होना आम बात हे लेकिन रेस्पेक्ट  मिलना एक अलग ही मुकाम हे जो इरफ़ान ने प्राप्त किआ। उनको हॉलीवुड तक सोहरत हाशिल हुई। भारत के डायरेक्टर्स उनको पहचान नहीं पाए ,कुछ को छोड़के !    इरफ़ान हमें हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे,अपनी कला के प्रति समर्पित होने की,या बात बात हो धर्म के प्रति खुले मन से बोलने की। अपनी कला से सब के दिलो में राज करते करेंगे। ... 






       

   


          

Comments

  1. Bahut achha likha he. Irrfan khan ki zindagi ye pahlu, logon ke janne yogya he. Inki zindagi se log prerna le sakta hein.

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  2. So sal me shayad esa kalakar milate hai !!!

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