kartarsinh sarabha: biography,rare photos,gadar party
भगतसिंह के आदर्श ,प्रेरणास्त्रोत : शहीद करतारसिंह सराभा
kartarsinh sarabha biography
आज हम बात करेंगे ,उस इंसान के बारेमे जो भगतसिंह के आदर्श थे, और जिनको आदर्श मानकर भगतसिंह ने 23 साल 5 महीने और 26 दिन की उम्र में हस्ते-हस्ते फांसी पर चढ़ गए | भगतसिंह जिनकी फोटोकॉपी अपनी पॉकिट में रखा करते थे | जिनके कारन भगतसिंह के विचार साफ थे ,की फांसी पर चढ़ना हे , करतार सिंह सराभा जिन्होंने 19 साल की उम्र में देश के खातिर फांसी को गले लगा लिया | आज कितने नौजवान हे,जो हमारे स्कूल और कॉलेज में इनको जानते हो ?वो नौजवान जिसका मकसद मानवतावादी विचारो को फैलाना था | उनका एक ही धर्म था, एक ही आदर्श,''देश की सेवा में मरना''' |
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करतारसिंह सराभा |
19 साल की छोटी उम् में ऐसे कार्य किए, जिसे आज पूरी दुनिया कायल हे | नौजवान करतारसिंह में इतना साहस ,दृढ़ निश्चय ,लगन , तत्परता, आत्मविश्वास , और देश के लिए जान देने की जल्दी थी| इस नौजवान को आज के भारत के परिपेक्ष में देखा जाए तो यह बहोत ही मौजू हे की ,क्या आज का नौजवान, आज के भारत के लिए ऐसा सोचता हे ? आज का नौजवान राजनीती में देश के लिए क्या कर रहा हे? करतारसिंह हमें बहोत ही बड़ी सिख देते है | उन लोगो के लिए जो राष्ट्रवाद की बाते करने में ही माहिर हे , और सत्ता के इतने लालची हे की देश आज भी गरीबी, बेकरी ,पानी ,बिजली ,अच्छी शिक्षा ,स्वास्थ्य सुविधा ,.... इन सब जरुरत को देश के आम इंसान तक नहीं पहुंचा पाए | यहाँ पर करतारसिंह का जीवन की बात करते हे | करतारसिंह 16 नवंबर 1915 में फांसी पर चढ़ गए थे जब वह महज 19 साल के थे |
आज़ादी के लिए जन्म :
करतारसिंह का जन्म सराभा गांव में हुआ था | इस महान क्रान्तिकारी का जन्म 24 मई 1896 को माता साहिब कौर की कोख से हुआ | पिता का नाम सरदार मंगल सिंह था | करतारसिंह माता पिता के एक लौते पुत्र थे | उनकी छोटी बेटी धनकौर थी | परिवार के सभी लोग उनको बड़े ही लाड़- प्यार से पाल रहे थे | तभी छोटी अवस्था में ही पिता का अवसान हो गया था |
पिता के मरने के बाद उनके लालन- पालन का काम दादा बदन सिंह ने किआ | उस ज़माने में करतारसिंह के तीनो चाचा बिसन सिंह, वीरसिंह और बक्सीस सिंह सरकारी पदवीओं पर काम करते थे | उनके एक चाचा संयुक्त प्रान्त में पुलिस -सब- इंस्पेक्टर थे और दूसरे उड़ीसा के मुहकमा जंगलात में कार्य करते थे |
चलो चल्लीए देश नु युद्ध करन|
प्रारंभिक शिक्षा :
करतारसिंह की प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव के ही हुई | बाद में खालसा हाईस्कूल में दाखिल हुए | उनके सहपाठी उनको ''अफलातून'' कहा करते थे | सभी लोग इनसे बहोत प्यार करते थे| स्कूल में एक अलग गुट बनाया था | नेतागिरी के सभी गुण बचपन से ही विद्धमान थे | नौवीं श्रेणी तक वही पढाई करके आगे की पढाई के लिए अपने चाचा के साथ उड़ीसा चले गए | उन दिनों उड़ीसा बंगाल प्रान्त का हिस्सा था|
तब बंगाल प्रान्त ब्रिटिश भारत की राजधानी हुआ करती थी, तो राजनितिक रूप से अधिक सचेत था | वहां के माहौल में सराभा ने स्कूली शिक्षा के साथ अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ना भी शुरू किया। दसवीं कक्षा पास करने के उपरांत उसके परिवार ने उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए उन्हें अमेरिका भेजने का निर्णय लिया | 1 जनवरी 1912 को सराभा ने अमेरिका की धरती पर पांव रखा। उस समय उनकी आयु पंद्रह वर्ष से कुछ महीने ही अधिक थी | इस उम्र में सराभा ने उड़ीसा के रेवनशा कॉलेज से ग्यारहवीं की परीक्षा पास कर ली थी। सराभा गांव का रुलिया सिंह 1908 में ही अमेरिका पहुंच गये थे | अमेरिका-प्रवास के प्रारंभिक दिनों में सराभा अपने गांव के रुलिया सिंह के पास ही रहे । उनके बचपन की जीवन संबंधी क्षणों में ऐतिहासिकता के अंश उनके अमेरिका-प्रवास के दौरान ही शुरू होते हैं, जब उसके भीतर एक आज़ाद देश में रहते हुए अपनी राष्ट्रीय अस्मिता, आत्मसम्मान व आज़ाद जीने की इच्छा पैदा हुई। इस चेतना को प्राप्त करने की शुरूआत सानफ्रांसिस्को की बंदरगाह पर उतरते ही शुरू हो गई थी, अधिकारी द्वारा उतरने की अनुमति न दिए जाने के प्रश्न के उत्तर में सराभा ने तर्कपूर्ण उत्तर दिया था ।
अधिकारी ने कहा ,: भारत में कोई विश्वविद्यालय न मिला?
करतारसिंह ने उत्तर दिया :" में उच्चशिक्षा प्राप्त करने के लिए केलिफ़ोनिया विश्वविद्यालय में दाखिल होने के विचार से आया हुँ |
अधिकारी ने कहा ,: भारत में कोई विश्वविद्यालय न मिला?
करतारसिंह ने उत्तर दिया :" में उच्चशिक्षा प्राप्त करने के लिए केलिफ़ोनिया विश्वविद्यालय में दाखिल होने के विचार से आया हुँ |
अधिकारी ने कहा:'' यदि तुम्हे न अतरने दिया जाए तो ? ''
इस प्रश्न का बहोत ही तर्कपूर्ण उत्तर दिया: '' तो में समझूंगा की बहोत अन्याय हुआ , विद्यार्थीओ के रास्ते में अड़चन डालने से संसार की प्रगति रुक जाएगी ,शायद में ही यहाँ शिक्षा पाकर संसार की भलाई का कार्य करने में सक्षम हो सकूं ! यहा उतरने की आज्ञा न मिलने पर संसार उससे वंचित नहीं रह जाएगा?''
अधिकारी ने जवाब से प्रभावित होकर उतर जाने की आज्ञा दे दी |
लेकिन अमेरिका के दो तीन महीने के प्रवास में ही जगह-जगह पर मिले अनादर ने सराभा के भीतर सुषुप्त चेतना जगानी शुरू कर दी। एक बुजुर्ग महिला के घर में किराएदार के रूप में रहते हुए, जब अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस 4 जुलाई के अवसर पर महिला ने घर को फूलों व वीर नायकों के चित्रों से सजाया ,तो सराभा ने इसका कारण पूछा। महिला के यह बताने पर कि अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस पर नागरिक ऐसे ही घर सजा कर खुशी का इज़हार करते हैं तो सराभा के मन में भी यह भावना जागृत हुई कि हमारे देश की आज़ादी का दिन भी होना चाहिए।
पार्टी की स्थापना
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vancouver public library special collections.some of the 376 panjabis ,mostly sikhs,aboard the komagatamaru in vancouver harbour .LEONARD FRANK VPL |
भारत से अमेरिका गए भारतीय, जिनमें से ज़्यादातर पंजाबी थे, प्रायः पश्चिमी तट के नगरों में रहते और काम की तलाश करते थे। इन शहरों में पोर्टलैंड, सेंट जॉन, एस्टोरिया, एवरेट आदि शामिल थे, जहां लकड़ी के कारखानों व रेलवे वर्कशॉपों में काम करते थे। कनाडा व अमेरिका में गोरी नस्ल के लोगों के नस्लवादी रवैये से भारतीय मज़दूर काफी दुखी थे। भारतीयों के साथ इस भेदभावपूर्ण व्यवहार के विरुद्ध कनाडा में संत तेजा सिंह संघर्ष कर रहे थे तो अमेरिका में ज्वाला सिंह ठट्ठीआं संघर्षरत थे। इन्होंने भारत से विद्यार्थियों को पढ़ाई करने के लिए अमेरिका बुलाने के लिए अपनी जेब से छात्रवृत्तियां भी देते थे |
1912 के आरंभ में पोर्टलैंड में भारतीय मज़दूरों का एक बड़ा सम्मेलन हुआ, जिसमें बाबा सोहन सिंह भकना, हरनाम सिंह टुंडीलाट, काशीराम आदि ने हिस्सा लिया। ये सभी बाद में गदर पार्टी के महत्त्वपूर्ण नेता बन कर उभरे। इस समय करतार सिंह की भेंट ज्वाला सिंह ठट्ठीआं से भी हुई, जिन्होंने उसे बर्कले विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया, जहां सराभा रसायन शास्त्र का विद्यार्थी बने । बर्कले विश्वविद्यालय में कर्तार सिंह पंजाबी होस्टल में रहने लगे । बर्कले विश्वविद्यालय में उस समय करीब तीस विद्यार्थी पढ़ रहे थे, जिनमें ज़्यादातर पंजाबी व बंगाली थे। ये विद्यार्थी दिसंबर, 1912 में लाला हरदयाल के संपर्क में आए, जो उन्हें भाषण देने गए थे। लाला हरदयाल ने विद्यार्थियों के सामने भारत की गुलामी के संबंध में काफी जोशीला भाषण दिया। भाषण के पश्चात् हरदयाल ने विद्यार्थियों से व्यक्तिगत रूप से भी बातचीत की। लाला हरदयाल और भाई परमानंद ने भारतीय विद्यार्थियों के दिलों में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ भावनाएं पैदा करने में बड़ी भूमिका निभाई। भाई परमानंद बाद में भी सराभा के संपर्क में रहे। इससे धीरे-धीरे सराभा के मन में देशभक्ति की तीव्र भावनाएं जागृत हुईं और वह देश के लिए मर-मिटने का संकल्प लेने की ओर अग्रसर होने लगा।
दल बनने के बाद उनको संवाद पत्र की आवश्यकता महसूस हुई, | ग़दर नामका पत्र निकला | पहला अंक 1 नवंबर 1913 में छापा गया | उस पत्र के संपादक विभाग में करतारसिंह सराभा भी थे | संपादक इसे हैंड प्रेस पर छापते भी थे | जब वह हैंड प्रेस चलाते -चलाते थक जाते तो पंजाबी में गीत गाया करते |
ग़दर पार्टी का जन्म अमेरिका के सैन फ़्रांसिस्को के एस्टोरिया में 1913 में अंग्रेज़ी साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से हुआ। गदर पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष सरदार सोहन सिंह भाकना थे। इसके अतिरिक्त केसर सिंह थथगढ - उपाध्यक्ष, लाला हरदयाल - महामंत्री, लाला ठाकुर दास धुरी - संयुक्त सचिव और पण्डित कांशी राम मदरोली - कोषाध्यक्ष थे।
स्थापना के बाद गदर पार्टी की पहली बैठक सैक्रामेंटो, कैलिफ़ोर्निया में दिसम्बर 1913 में आयोजित की गयी।
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ग़दर पार्टी मुख्यालय सानफ्रांसिस्को |
उद्देश्य
ग़दर पार्टी की पहली सभा के विचार थे कि अंग्रेज़ी राज के विरूध्द हथियार उठाना यह गद्दारी नहीं महायुध्द है। हम इस विदेशी राज के आज्ञाकारी नहीं, पर घोर दुश्मन हैं। हमारी इसी दुश्मनी को अंग्रेज गद्दरी कहते हैं। इसीलिए वे हमारी 1857 की आज़ादी की जंग को ''ग़दर'' कहते आ रहे हैं।
कोलम्बिया (अमेरिका) के किनारे के भारतीय मज़दूरों में काम शुरू किया। गदर पार्टी ने 21 अप्रैल 1913 को असटेरिया की आरा मिलों में एक बुनियादी प्रस्ताव पास किया जिसके तहत कहा गया कि गदर पार्टी हथियारबंद इंक़लाब की मदद से अंग्रेज़ी राज से भारत को आज़ाद कर गणतंत्र कायम करेंगी। गौरतलब है कि यह प्रस्ताव भारतीय कांग्रेस ने 16 साल बाद पंडित नेहरू के बहुत दबाव के बाद 1929 में लाहौर में पास किया था। सभा में हर वर्ष चुनाव करने का निर्णय लिया। साथ ही यह भी तय किया गया कि इसमें कोई धार्मिक बहस नहीं होगी। धर्म को एक निजी मामला समझा गया था। हर समुदाय प्रत्येक माह एक डालर चंदा देगा, ग़दर का अक्ख़बार हिंदी, पंजाबी और उर्दू में निकाला जाएगा।
"जंग दा होका
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'ग़दर दी गूंज' पुस्तक को भारत में सन 1913 में प्रतिबंधित कर दिया गया था | जिसमे सोशलिस्ट साहित्य का संग्रह था | |
युगांतर आश्रम सानफ्रांसिस्को के ग़दर प्रेस में 'ग़दर' और 'ग़दर की गूंज' प्रेस होती गई और बटती गई | 'गदर दी गूंज' नामक पुस्तक को भारत में सन् 1913 में अंग्रेज़ी सरकार ने प्रतिबन्धित कर दिया था। इसमें राष्ट्रीय एवं सोसलिस्ट साहित्य का संग्रह था।
प्रचार जोरो पर था सबका जोश आसमान पर था | फरवरी 1914 को स्टॉकटन की सार्वजनिक सभा में ग़दर पार्टी का झंडा फहराया गया और स्वतंत्रता, समानता ओर बंधुता की भावना की सपथ की गई | इसी दिनों यूरोप से खबर आयी की विश्व युद्ध हो गया हे ,सबके आनंद और उत्साह की सिमा न रही | तब सभी लोग अपनी मातृभूमि के लिए गा रहे थेकि ,
चलो चल्लीए देश नु युद्ध करन|
एहो आखिरी वचन ते फरमान हो गए ||
''निपन मारू ''नामके जहाज में अमरीका से बैठे | 16 सितम्बर 1914 को वह कोलम्बो पहुंच गए | वहा से वो पंजाब आ गए | फिर सचिन्द्रनाथ सान्याल और रासबिहारी का भी साथ मिला |
डकैती :
आने के तुरंत करतारसिंह फिरोजपुर छावनी के सिपाहियों से अंग्रेजो के सामने विद्रोह ने के लिए जोड़ तोड़ कर रहे थे |कलकत्ता सश्त्रो के लिए जा रहे थे | लेकिन दल के पास पैसे नहीं थे | दल के सामने डकैती का प्रस्ताव रखा गया |
रात को डकैती के लिए रब्बो नामके गांव में गए थे | करतारसिंह अध्यक्ष थे | गांव में गए और डकैती होने लगी| डकैती के समय जिस घर में डकैती डाल रहे थे, उस पर घर में एक सुन्दर युवति थी , उसे देखकर एक व्यक्ति का मन विचलित हुआ और उसने लड़की का हाथ पकड़ लिया | लड़की गभरा गई और चीखने चिल्लाने लगी | उस समय करतारसिंह ने उस साथी को निःशस्त्र कर दिया ,उसे कहा ,-''पापी तेरा अपराध बहोत ही भीषण हे| इसी समय मृत्यु दे देता,किन्तु में परिस्थिति से बाध्य हुं | इस लिए इस युवति के पाव में सर रखकर क्षमा मांग | हे, बहन ! मुज पापी को क्षमा करो | माता से भी चरण पकड़कर कहो की क्षमा चाहता हु ! यदि वह तुम्हे जिन्दा छोड़ती हे,तो में तुम्हे जिन्दा छोड़ दूंगा , वार्ना अभी गोली से उडा दूंगा | '' उसने वैसा ही किया | यह देखकर माँ और बेटी उन दोनों की आंखे भर आयी | माँ ने उस युवा करतारसिंह विचारो से प्रभावित होकर कहा - बेटा ! ऐसे धर्मात्मा और सुशिल युवक होकर तुम इस कार्य में क्यों शामिल हुए हो ? करतारसिंह भी ये बात सुनके उनका मन भर आया | कहा :- माँ ! रूपये के लोभ से नहीं , अपना सब न्योछावर करके ही डाका डालने चले थे | हम अंग्रेजी सरकार के सामने विद्रोह करने की तयारी कर रहे है | शश्त्रो को खरीदने के लिए रुपया चाहिए | उसी महान कार्य के लिए हमारा दल यह नीच कार्य करने के लिए बाध्य हुआ हे |''
शब्दो से हम उस दृश्य का आंकलन नहीं कर सकते | करतारसिंह कितने भावुक पवित्र विचारो के धनि ,और कितने महान थे, ये हमें उसी घटना से पता चलता हे |
विद्रोह की तयारी में लग गए ,आगरा ,कानपूर , मेरठ ,इलाहबाद, बनारस, लखनऊ और मेरठ के सिपाहीओं से विद्रोह के लिए बात हो गई | २१ फरवरी को विद्रोह के लिए दिन चुना गया| लेकिन अंग्रेजो को किसीने बातमी दे दी थी जिससे उन्होंने विद्रोह की तारीख में फेरबदल किआ | 19 फरवरी का दिन तय हुआ |
शब्दो से हम उस दृश्य का आंकलन नहीं कर सकते | करतारसिंह कितने भावुक पवित्र विचारो के धनि ,और कितने महान थे, ये हमें उसी घटना से पता चलता हे |
विद्रोह की तयारी में लग गए ,आगरा ,कानपूर , मेरठ ,इलाहबाद, बनारस, लखनऊ और मेरठ के सिपाहीओं से विद्रोह के लिए बात हो गई | २१ फरवरी को विद्रोह के लिए दिन चुना गया| लेकिन अंग्रेजो को किसीने बातमी दे दी थी जिससे उन्होंने विद्रोह की तारीख में फेरबदल किआ | 19 फरवरी का दिन तय हुआ |
विद्रोह का दिन
19 फरवरी का दिन ,करतारसिंह और उनके 50 साथी फिरोजपुर छावनी की और चल पड़े | करतारसिंह अपने साथिओ के साथ छावनी में घुस गए | वहा भारतीय फौजी हवालदार से मिले ,उसने कहा सभी सैनिक निःशस्त्र कर दिए गए हे और गिरफ्तारियां की जा रही हे | किसी गद्दार ने ये काम किआ था | सभी जगह गिरफ्तारियां हो रही थी| सब नीरस होकर वापस आ गए | तब सभी ने निश्चय किआ की पश्चिमी सिमा की और से विदेश जाना चाहिए | करतारसिंह ,जगतसिंह ,और हरनामसिंह सिमा पार कर गए | लेकिन उनके काफी साथी गिरफ्तार किए गए थे | वहा पर पहाड़ो के बिच एक नदी आयी, और उस नदी के किनारे बैठे थे | तभी वह वहा गीत गुनगुनाने लगे | उनको लगा की लौटकर सभी साथीओको छुड़ाया जाए | वह जानते थे की मृत्यु उनका इंतजार कर रही हे ,तब भी अपने साथिओ को बचाने निकल पड़े | सभी सरगोधा के चक नं 5 में गए | वहा पर सभी विद्रोह की चर्चा कर रहे थे | और वही पर सब पकडे गए |
सभी को बेड़ियों से बांधकर लाहौर स्टेशन लाया गया | तब उन्होंने कहा : ,''साहस से मर जाने पर मुझे ''बागी'' का ख़िताब देना ,कोई याद करे तो बागी करतारसिंह कहकर याद करे | ''
जेल में रखा गया | लेकिन जेल में भी वह बहार निकल के विद्रोह की कोशीश में लग गए | उन्होंने लोहा काटने के साधन गुप्त रूप से मंगवाए | जेल से भागने का प्लान बनाया | सभी क्रांतिकारिओं को इकठ्ठा किआ और तय किआ की सभी लोग उसी रात जेल से भाग निकले | वह से सीधे छावनी जाए | वहा पर भारतीय सिपाहियों की मदद से सभी को सशस्त्र किआ जाए ,फिर विद्रोह किआ जाए |
लेकिन किसी साधारण केदी को ये भेद पता चल गया | उसने अंग्रेजो को बता दिया | सभी कोठरीओ को बंद कर दिया गया और सबको बेड़िया पहनाई गई | उनके सभी प्रयत्न निष्फल हो गए |
उनके ऊपर केस चलाया गया | तब करतारसिंह महज साडे -अठारह साल के थे | सभी में करतार सिंह ही छोटे थे |
सभी को बेड़ियों से बांधकर लाहौर स्टेशन लाया गया | तब उन्होंने कहा : ,''साहस से मर जाने पर मुझे ''बागी'' का ख़िताब देना ,कोई याद करे तो बागी करतारसिंह कहकर याद करे | ''
जेल में रखा गया | लेकिन जेल में भी वह बहार निकल के विद्रोह की कोशीश में लग गए | उन्होंने लोहा काटने के साधन गुप्त रूप से मंगवाए | जेल से भागने का प्लान बनाया | सभी क्रांतिकारिओं को इकठ्ठा किआ और तय किआ की सभी लोग उसी रात जेल से भाग निकले | वह से सीधे छावनी जाए | वहा पर भारतीय सिपाहियों की मदद से सभी को सशस्त्र किआ जाए ,फिर विद्रोह किआ जाए |लेकिन किसी साधारण केदी को ये भेद पता चल गया | उसने अंग्रेजो को बता दिया | सभी कोठरीओ को बंद कर दिया गया और सबको बेड़िया पहनाई गई | उनके सभी प्रयत्न निष्फल हो गए |
उनके ऊपर केस चलाया गया | तब करतारसिंह महज साडे -अठारह साल के थे | सभी में करतार सिंह ही छोटे थे |
जोशीला करतार
करतारसिंह के बयान देने की बारी आइ | पूरा दिन करतारसिंह ने बयान दिए, और सब कुछ मान लिया| इससे जज साहब अपनी पेन मुँह में ड़ाले उन्हें सुनते रहे | मुँह में पेन दबाते सुन रहे थे ,लेकिन कुछ लिखा नहीं | जज ने कहा : करतार सोच समझकर बयान दो ! तुम जानते हो तुम्हारे अपने बयानों का क्या नतीजा निकल सकता हे |
तब करतार सिंह ने कहा था-'' फांसी ही लगाओगे न और क्या ?हम डरते नहीं हे |''
उसके अगले दिन अदालत में फिर से बयांन शुरु हुआ | करतारसिंह का बयान जोरदार और जोशीला था |तभी करतारसिंह ने अंत में कहा -''मेरे अपराध से मुझे आजीवन कारवास मिलेगा या तो फांसी ! में फांसी को पसंद करूँगा | ताकि फिरसे जन्म लेकर भारत की आज़ादी के लिए अपनी जान दे सकू | जब तक भारत स्वतंत्र न हो जाए तब तक ऐसे ही बार बार जन्म लेकर फांसी पर लटकता रहु यही आशा हे |''
करतारसिंह की दृढ़ता से जज और सभी को प्रभावित किआ ,लेकिन उदार शत्रु की तरह उन्हें फांसी की सजा सुनाई |16 नवम्बर 1915 को उनको फांसी दी जानी थी |
फांसी
जब फांसी होने वाली थी तब उनके दादा ने पूछा था -''करतारसिंह किसके लिए मर रहे हो, जो तुम्हे गालिया देते हे उनके लिए ? तुम्हारे मरने से देश को कोई लाभ हो वो मुझे तो नही दीखता !''
तब करतारसिंह ने तर्क किया था की -''अमुक व्यक्ति कहा हे ''?
'' प्लेग में मर गए| ''
'' दूसरे कहा हे ?''
'' दूसरे हैजे से मर गए |''
''तो क्या आप भी यही चाहते हे की करतारसिंह भी उसी तरह महीनो बिस्तर में पड़ा रहकर ,दर्द से कराहता हुआ ,किसी रोग से मरे ? क्या उस मृत्यु से ये मृत्यु अच्छी नहीं ? ''
तब दादा के पास उनका कोई उत्तर नहीं था |
फांसी की सजा पाने की खुशी में उन्होंने अपना वजन भी बढ़ा लिया था और वो फांसी वाले दिन भी काफी खुश थे. 16 नवंबर 1915 को करतार सिंह सराभा को उनके 6 साथियों के साथ लाहौर जेल में फांसी दी गई. फांसी का फंदा पहनते समय भी करतार सिंह गदर की कविता गा रहे थे.
तब करतारसिंह ने तर्क किया था की -''अमुक व्यक्ति कहा हे ''?
'' प्लेग में मर गए| ''
'' दूसरे कहा हे ?''
'' दूसरे हैजे से मर गए |''
''तो क्या आप भी यही चाहते हे की करतारसिंह भी उसी तरह महीनो बिस्तर में पड़ा रहकर ,दर्द से कराहता हुआ ,किसी रोग से मरे ? क्या उस मृत्यु से ये मृत्यु अच्छी नहीं ? ''
तब दादा के पास उनका कोई उत्तर नहीं था |
फांसी की सजा पाने की खुशी में उन्होंने अपना वजन भी बढ़ा लिया था और वो फांसी वाले दिन भी काफी खुश थे. 16 नवंबर 1915 को करतार सिंह सराभा को उनके 6 साथियों के साथ लाहौर जेल में फांसी दी गई. फांसी का फंदा पहनते समय भी करतार सिंह गदर की कविता गा रहे थे.
किसके लिए ?
आठ हज़ार भारतीय अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में सुख-सुविधाओं भरी ज़िंदगी छोड़ कर भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद करवाने के लिए समुद्री जहाज़ों पर भारत पहुंचे थे। ‘गदर’ आंदोलन शांतिपूर्ण आंदोलन नहीं था, यह सशस्त्र विद्रोह था, लेकिन ‘गदर पार्टी’ ने इसे गुप्त रूप न देकर खुलेआम इसकी घोषणा की थी और गदर पार्टी के पत्र ‘गदर’, जो चार भाषाओं में निकलता था उसके माध्यम से इसका समूची भरतीय जनता से आह्वान किया था। अमेरिका की स्वतंत्र धरती से प्रेरित हो अपनी धरती को स्वतंत्र करवाने का यह शानदार आह्वान 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित था और ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने जिसे अवमानना से ‘गदर’ नाम दिया, उसी ‘गदर’ शब्द को सम्मानजनक रूप देने के लिए अमेरिका में बसे भारतीय देशभक्तों ने अपनी पार्टी और उसके मुखपत्र को ही ‘गदर’ नाम से विभूषित किया। जैसे 1857 के ‘गदर’ यानी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बड़ी रोमांचक है, वैसे ही स्वतंत्रता के लिए दूसरा सशस्त्र संग्राम यानी ‘गदर’ भी चाहे असफल रहा लेकिन इसकी कहानी भी कम रोचक नहीं है।
विश्व स्तर पर चले इस आंदोलन में दो सौ से ज़्यादा लोग शहीद हुए, ‘गदर’ व अन्य घटनाओं में 315 से ज़्यादा ने अंडमान जैसी जगहों पर काले पानी की उम्रकैद भुगती और 122 ने कुछ कम लंबी कैद भुगती। सैकड़ों पंजाबियों को गांवों में वर्षों तक नज़रबंदी झेलनी पड़ी। उस आंदोलन में बंगाल से रास बिहारी बोस वे शचीन्द्रनाथ सान्याल, महाराष्ट्र से विष्णु गणेश पिंगले व डॉ॰ खानखोजे, दक्षिण भारत से डॉ॰ चेन्चय्या व चंपक रमण पिल्लै तथा भोपाल से बरकतुल्ला आदि ने हिस्सा लेकर उसे एक ओर राष्ट्रीय रूप दिया तो शंघाई, मनीला, सिंगापुर आदि अनेक विदेशी नगरों में हुए विद्रोह ने इसे अंतर्राष्ट्रीय रूप भी दिया। 1857 की भांति ही ‘गदर’ आंदोलन भी सही मायनों में धर्म निरपेक्ष संग्राम था जिसमें सभी धर्मों व समुदायों के लोग शामिल थे।
गदर पार्टी आंदोलन की यह विशेषता भी रेखांकित करने लायक है कि विद्रोह की असफलता से गदर पार्टी समाप्त नहीं हुई, बल्कि इसने अपना अंतर्राष्ट्रीय अस्तित्व बचाए रखा व भारत में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होकर व विदेशों में अलग अस्तित्व बनाए रखकर गदर पार्टी ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। आगे चल कर 1925 -26 से पंजाब का युवक विद्रोह, जिसके लोकप्रिय नायक भगत सिंह बने, वह गदर पार्टी व कर्तार सिंह सराभा से अत्यंत रूप में प्रभावित रहे ।
आज फिर प्रश्न उठता हे,करतार सिंह को फांसी( 16 नवंबर 1915) से आज तक करीब 105 साल हो गए हे | देश को आज़ादी मिले आज सत्तर साल से भी ज्यादा का समय व्यतीत हो चूका हे | वह किसके लिए मरे? उनके दादा का प्रश्न : करतारसिंह किसके लिए मर रहे हो ? जवाब स्पस्ट हे की , वह अपने वतन की महोब्बत के लिए मरे | आज़ादी के लिए मरे ,ताकि देश आज़ाद हो सके | उनके बाद भगतसिंह ने वह कार्य चलाए रखा |उनके बाद गांधी का दौर शुरू हुआ,वह उनके बाद आज़ादी का चेहरा रहे | आज़ादी मिल भी गई | लेकिन आज क्या हमको पता हे की हमने इस आज़ादी के लिए कितनी किम्मत चुकाई हे ?शायद आज हम नहीं जानते ! आज़ादी के बाद गाँधी की हत्या कर दी गई | बाद के सालो में कांग्रेस का शासन रहा | राष्ट्रिय स्वयं सेवक हिंदुत्व के कार्ड पर आगे बढ़ता रहा | दोनों राजनैतिक रूपसे सक्षम थे | दोनों ने समय समय पर लोकतान्त्रिक रूप से सत्ता संभाली ,लेकिन हम किसको दोष दे, की इन क्रांतिकारिओं को किसने इतिहास के पन्नो में बंध कर रखा ?
आज के शिक्षा में इनका कही नाम और निसान नहीं हे | पाठ्यक्रम तो बदलता हे लेकिन सिर्फ सरकार बदलने से ! आज भी कांग्रेस और भाजपा की सिर्फ सत्ता की लड़ाई जारी है ,आज भी लोग शिक्षा ,घर , गरीबी , बेकारी ,से जुज रहे हे ,देश आज भी लूट रहा हे | सिर्फ अंग्रेज चले गए ,लेकिन आज काळे अंग्रेज राज कर रहे हे !आज कितने नौजवान हे हमारे स्कूल और कॉलेज में जो इनको जानते हे ?
भगतसिंह के आदर्श
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करतार सिंह सराभा गदर पार्टी के वो वीर नायक बने, जिससे बाद में 1925 - 31 के दौरान भगत सिंह क्रांतिकारी आंदोलन के महानायक बने। यह अस्वाभाविक नहीं है कि कर्तार सिंह सराभा ही भगत सिंह के सबसे लोकप्रिय नायक थे, जिनका चित्र वे हमेशा अपनी जेब में रखते थे | ‘नौजवान भारत सभा’ और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी नामक युवा संगठन के माध्यम से वे समस्त भारत के नवयुवकों में आज़ादी की प्रेरणा जगाने का काम किआ ।
आज भारत के लिए करतारसिंह बहोत कुछ कह जाते हे , नमन उस वीर को....
इंक़लाब ज़िंदाबाद ||
Jor bhai
ReplyDeleteTHANK YOU
ReplyDeleteInklaab zindabad
ReplyDeleteinqulab zindabad
DeleteSukanya Samriddhi Yojana
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